आपका हमारे ब्लॉग hindistortales.com पर स्वागत है। आज हम आपके लिए Hanuman Ji Ki Kahaniya। Hanuman Ji Ki Katha। Hanuman Ji Aarti का संग्रह लेकर आए हैं। जो बहुत दिलचस्प है. और आप की आस्था को भगवान हनुमान जी की भक्ति में और वी बढ़ाएगा। बहुत सारे लोग पूछते हैं कि hanuman chalisa padhne ke fayde ? इस बारे में हमने विस्तार से बताया है उन्हें भी पढ़ें और अपने जीवन में हनुमान जी की कृपा से अपने घर में खुशियां लाएं । हमें उम्मीद है कि आपको हमारी यह संग्रह पसंद आएगा और आप इसे दूसरों के साथ साझा करेंगे।
Story of Hanuman Ji in Hindi
गांव में रामसेवक नाम का एक गरीब किसान अपनी मां जानकी के साथ रहता था। रामसेवक हनुमान जी का भक्त था। वह हनुमान जी की दिन-रात पूजा करता रहता था। रामसेवक के ऊपर गांव के जमींदार का काफी कर था, जिसे न चुकाने के कारण उसे जमींदार के गोदाम पर मजदूरी करनी पड़ती थी। रामसेवक सुबह जल्दी उठकर अपने खेतों में काम करने चला जाता था, वहां से आने के बाद वह जमींदार के गोदाम पर जाकर मजदूरी करता था।
एक दिन रामसेवक रात को वापस आ रहा था, तभी उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। गौर से देखा तो एक पेड़ के नीचे बैठी एक बूढ़ी महिला थी। रामसेवक ने उनसे पूछा, “माजरा क्या है? आप क्यों रो रही हो?” तब बुढ़िया माई ने बताया, “बेटा, मेरे बेटे ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है।” उनकी बात सुनकर रामसेवक को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा, “माजी, कोई अपनी मां को घर से कैसे निकाल सकता है? आप मुझे अपने घर ले चलिए, मैं आपके बेटे को समझा-बुझाकर आपको रखने के लिए मना लूंगा।” तब बुढ़िया माई ने कहा, “बेटा, वह नहीं मानेगा। वह अपनी पत्नी की बात मानता है और उसकी पत्नी मुझे पसंद नहीं करती।” रामसेवक बुढ़िया माई को अपने घर ले आया।
अगले दिन मंगलवार था। रामसेवक हनुमान जी के मंदिर जा रहा था। तब बुढ़िया माई ने कहा, “बेटा, मुझे भी साथ ले चलो।” रामसेवक उन्हें लेकर मंदिर पहुंच गया। हनुमान जी की पूजा की और वापस घर की ओर चल दिया। तभी बुढ़िया माई ने कहा, “बेटा, मुझे यहीं छोड़ दे। तेरे घर कब तक रहूंगी? यहीं हनुमान जी की सेवा कर लूंगी, मेरा मन भी लगा रहेगा।” रामसेवक ने कहा, “नहीं माताजी, मैं आपको अकेला नहीं छोड़ सकता। आप मेरे घर चलो, वहीं आराम से रहना।” लेकिन बुढ़िया माई नहीं मानी। रामसेवक ने कहा, “ठीक है माताजी, लेकिन रोज आपसे मिलने आया करूंगा। जब तक आपका मन करे, यहीं रहना। नहीं तो मैं आपको अपने घर ले जाऊंगा।”
एक दिन रामसेवक मंदिर गया, लेकिन उसे वहां बुढ़िया माई नहीं मिली। उसने मंदिर के पुजारी से पूछा तो उन्होंने बताया, “बेटा, वे एक दिन यहां बैठी थीं। तभी उनका बेटा और बहू यहां आ गए और वे बुढ़िया माई से लड़ने लगे। हम सब ने उन्हें यहां से भगा दिया, लेकिन उनके जाने के बाद बुढ़िया माई रोती रहीं और फिर न जाने कहां चली गईं।” यह सुनकर रामसेवक रोने लगा। वह हनुमान जी के सामने जाकर कहने लगा, “हे बजरंगबली, मैं आपके भरोसे माजी को यहां छोड़ गया था। जाने कहां होंगी भूखी-प्यासी। उनकी रक्षा करो बाबा और मुझे उनसे मिला दो।” ऐसा कहकर रामसेवक वहीं मंदिर में बुढ़िया माई का इंतजार करता रहा।
अगले दिन वह जमींदार के पास गया और उनसे कहा, “मेरी मां जी कहीं खो गयी हैं। उन्हें ढूंढने की छुट्टी चाहिए।” जमींदार ने कहा, “ढूंढने निकल जा, लेकिन केवल दो दिन की छुट्टी मिलेगी।” रामसेवक ढूंढने निकल जाता है। ढूंढते-ढूंढते एक घर भी पहुंच जाता है। उसे बहुत भूख लगी थी। खाने की तलाश में चलने लगता है। तभी उसके कानों में भगवान राम के भजन सुनाई देते हैं। वह आगे जाता है तो देखता है कि एक साधु बाबा पेड़ के नीचे बैठे भजन कर रहे थे। रामसेवक ने उनसे कहा, “बाबा, मैं बहुत भूखा हूं। कुछ खाने को मिल सकता है क्या?”
साधु बाबा ने कहा, “बेटा, तू सच्चे मन से परोपकार करने निकला है। जिसे अपने बेटे ने निकाल दिया, उसे तू जंगल-जंगल ढूंढ रहा है।” यह सुनकर रामसेवक को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने कहा, “बाबा, आपको कैसे पता?” तभी वह साधु बाबा परिवर्तित होकर हनुमान जी के रूप में प्रकट हो गए और बोले, “मैं तेरी भक्ति और दया भावना से बहुत प्रसन्न हूं। जिस बुढ़िया माई को तू ढूंढ रहा है, वह यौन मां लक्ष्मी थी और जिन बहू-बेटों के बारे में उन्होंने बताया था कि वे कलियुग का झूठा कांत और उसकी पत्नी थे।
वह अपने स्वभाव के कारण मां लक्ष्मी का अनादर करते रहते थे। जिससे दुखी होकर मां लक्ष्मी इस संसार में विचरण कर रही थीं। लेकिन तूने गरीब और कर्ज़दार होते हुए भी उन्हें अपने घर में शरण दी। अपना कार्य छोड़कर निस्वार्थ भाव से उन्हें ढूंढने निकला है।”रामसेवक की आंखों से आंसू बह रहे थे। वह बोला, “मां लक्ष्मी ने स्वयं मेरे घर में वास किया, लेकिन मैं उन्हें पहचान नहीं पाया।” यह कहकर वह रोने लगा। तब हनुमान जी ने कहा, “मां लक्ष्मी की कृपा और भक्ति के कारण तेरे सारे कष्ट मिट जाएंगे। अपने घर जा, वहां धन-धान्य के ढेर लगे हैं और तेरे घर में हमेशा मां लक्ष्मी का वास रहेगा। मैं हमेशा तेरे साथ रहूंगा।” हनुमान जी अंतर्ध्यान हो गए।
रामसेवक घर आकर देखा तो उसका घर धन-धान्य से भरा हुआ था। अगले दिन उसने जमींदार का सारा कर्ज उतार दिया और वह अपने खेत पर काम करने लगा। साथ ही हर दिन हनुमान जी के मंदिर जाकर उनकी भक्ति करने लगा। मित्रों, आपको यह कहानी कैसी लगी? हमें कमेंट में बताएं।
हनुमान जी की बचपन की कहानी
बाल हनुमान की अनूठी कहानी भक्ति का प्रेरणादायक संग्रह। नमो नमो बजरंग बली! हर हर महादेव!
एक बार की बात है, जंगलों के गहरे घने वन में माता अंजनी के आशीर्वाद से भरी हुई एक गुफा में शिव भक्ति में ध्यान लगाते हुए अंजनी माता के गर्भ से हनुमान नामक एक अद्भुत बालक उत्पन्न हुआ। गुरुदेव वाल्मीकि मुनि जी ने हनुमान का उपनयन संस्कार किया। वाल्मीकि मुनि ने हनुमान को विद्या और धर्म के मार्ग पर चलने के उपदेश दिए।
हनुमान ने अपने गुरु की शिक्षाओं को बड़ी भक्ति और समर्पण से ग्रहण किया। उनकी आदर्श शिष्यता ने गुरु को अत्यंत प्रसन्न किया। एक दिन हनुमान जंगल में घूम रहे थे और अपनी मां के साथ खेल रहे थे। तभी एक विद्वान मुनि उनके पास आए और उन्हें ध्यान की शिक्षा देने का निमंत्रण दिया। हनुमान ने उनके पास जाकर उनकी शिक्षा ली। ध्यान के साथ हनुमान ने सारे जंगल में शांति और स्थिरता का आभास किया। वे ज्ञान का अद्भुत संग्रह बन गए। एक रोज हनुमान ने वन में बहुत सारे मित्रों के साथ खेलने की सोची।
वह अपने मित्रों को एकत्रित करने के लिए आगे बढ़े। सभी मित्रों के साथ एक साथ खेलते हुए हनुमान ने उन्हें ध्यान की शिक्षा देने का निर्णय लिया। उन्होंने सभी को एक साथ बैठाकर ध्यान की प्रक्रिया की शुरुआत की। विस्मित होते हुए सभी मित्र ध्यान में लगे और अपने चिंतन के धरातल पर एकाग्र हो गए। इस प्रकार हनुमान ने अपने मित्रों को ध्यान के महत्व को समझाया और उन्हें अपने आसपास के जीवों के प्रति सावधानी और समझदारी की शिक्षा दी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, हनुमान की ध्यान प्राप्ति में वृद्धि हुई। उन्होंने अपने दृष्टिकोण को बदलकर अपने जीवन के उद्देश्य को समझना शुरू किया। एक दिन हनुमान को विचार आया कि वे अपने गुरु वाल्मीकि मुनि की सेवा कैसे कर सकते हैं। उन्होंने तत्काल निर्णय लिया कि वे अपने गुरु की चरण धूलि करेंगे। हनुमान ने अपने मित्रों के साथ मिलकर गुरुदेव के पास जाकर उनके चरणों में धूलि की सेवा की। उन्होंने अपने गुरु के प्रति अपनी श्रद्धांजलि प्रदान की।
वाल्मीकि मुनि ने उनकी सेवा को अत्यंत प्रसन्नता से स्वीकार किया और उन्हें आशीर्वाद दिया। वे बोले, “हे हनुमान, तुमने सच्ची भक्ति का मार्ग अपनाया है। तुम्हारे जैसे वीर बच्चों की मेहनत से ही समाज में नई उम्मीदों की रोशनी आती है।”हनुमान ने गुरुदेव के आशीर्वाद का आभास पाकर अत्यंत खुश होकर अपने मित्रों के साथ जंगल में वापस लौटे। इस प्रकार हनुमान ने अपने धर्म के प्रति समर्पण और अपने गुरु की सेवा के माध्यम से एक महान उदाहरण स्थापित किया।
जैसे ही सूर्य पश्चिम में ढलने लगा, हनुमान अपने गुरुदेव की शिक्षाओं को याद करते हुए गुफा में वापस चले गए। गुरुदेव वाल्मीकि मुनि ने हनुमान को बड़ी भक्ति और समर्पण से पाला और उन्हें समस्त धार्मिक और वेदांतिक आवश्यक अध्ययन करने की सलाह दी। हनुमान ने गुरुदेव के उपदेशों का पालन किया और अपनी शक्तियों का उपयोग धर्म और सेवा में किया।
यह थी हनुमान जी की अनूठी कहानी जो हमें ध्यान और समर्पण की महत्त्वपूर्ण शिक्षा देती है। हनुमान जी के बाल्यकाल की यह अनूठी कहानी हमें सही दिशा दिखाती है और हमें धर्म, सेवा और उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित करती है।
हर हर महादेव! जय बजरंग बली!
राम भक्त हनुमान जी की कथा
नमस्कार दोस्तों! आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है हमारे ब्लॉग “hindistorytale.com” में। दोस्तों, आप सभी को हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। आज सुनिए हनुमान जी के जन्म की पौराणिक कथा।
महावीर हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार कहा जाता है और वे प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त भी हैं। हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया। उनकी माता का नाम अंजनी और उनके पिता वानर राज केसरी हैं। इस कारण उन्हें अंजनिपुत्र और केसरीनंदन आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
अब हनुमान जन्म की एक कहानी सुनते हैं। एक बार अयोध्या के राजा दशरथ अपनी पत्नियों के साथ पुत्रेष्टि हवन कर रहे थे। यह हवन पुत्र प्राप्ति के लिए किया जा रहा था। हवन समाप्ति के बाद गुरु देव ने प्रसाद की खीर तीनों रानियों में थोड़ी-थोड़ी बांटी। तभी वहां एक चील आ गई और उसने खीर का एक भाग अपने साथ ले लिया और वहां ले गई जहां अंजनी माता तपस्या कर रही थीं। यह सब भगवान शिव और वायु देव की इच्छा के अनुसार हो रहा था। तपस्या करती अंजनी माता के हाथ में जब खीर आई तो उन्होंने उसे भगवान शिव का प्रसाद समझकर ग्रहण कर लिया और इसी प्रसाद की वजह से हनुमान जी का जन्म हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक दिन मां अंजनी पर्वत के शिखर पर खड़ी सूर्य देव के तेज और खूबसूरती में लीन थीं। तभी वहां बहुत तेज हवाएं चलनी शुरू हो गईं। हवा का वेग इतना तीव्र था कि उनके वस्त्र उड़ने लगे। उन्होंने सोचा कि जरूर यह किसी दानव या असुर की उद्दंडता हो सकती है। क्रोधित होकर बोलीं, “यह कौन अभद्र है जो मेरी जैसी एक पति परायण स्त्री का अपमान करने की चेष्टा कर रहा है?”
तभी उनके सामने पवन देव प्रकट हुए और क्षमा मांगते हुए बोले, “देवि, मुझे माफ कर दें और शांत हो जाएं। आपके पति को जो वरदान प्राप्त है उसके अनुसार आपको मेरे समान एक शक्तिशाली पुत्र प्राप्त होगा। इसी वरदान को पूर्ण करने की विवशता में मैंने आपके शरीर को स्पर्श किया है। मेरे स्पर्श के माध्यम से रुद्रदेव का एक अंश भी आपके शरीर में प्रवेश कर चुका है। इसलिए महादेव के अवतार के रूप में आपका पुत्र इस धरती पर जन्म लेगा।”
इसके बाद भगवान शिव ने महाबली हनुमान के रूप में वानर राज के घर जन्म लिया। व्यक्ति कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा में अंजनी माता के उदर से हनुमान जी का जन्म हुआ। सूर्य उदय होते ही उन्हें भूख लगने लगी। माता अंजनी उनके लिए फल लेने गईं और इधर लाल वर्ण के सूर्य को फल मानकर हनुमान जी उसे लेने के लिए आकाश में उछल गए। उस दिन अमावस्या होने के कारण सूर्य को ग्रसने राहु आया था। किंतु हनुमान जी को दूसरा राहु मानकर वहां से भाग गया।
सूर्य को कहीं हनुमान जी न निगल जाएं, इसलिए इंद्र देव वहां प्रकट हुए और उन्होंने हनुमान जी पर वज्र का प्रहार कर दिया। इंद्र देव के ऐसा करने से पवन देव ने हर प्राणी मात्र की वायु का संचार रोक दिया। तभी ब्रह्मादि सभी देवों ने हनुमान जी को अनेक वर दिए। ब्रह्माजी ने अमितायु का, इंद्र ने वज्र से नष्ट ना होने का, सूर्य ने अपने शतांश तेज से युक्त और संपूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ होने का, वरुण ने पाश और जल से अभय रहने का, यम ने यमदंड से अवध्य और पाश से नाश न होने का, कुबेर ने शत्रुओं को मर्दन करने का और शंकर भगवान ने प्रमत्त और अजेय योद्धाओं से विजय प्राप्त करने का वर दिया। विश्वकर्मा ने अपने बनाए हुए सभी प्रकार के दुर्जेय और असह्य अस्त्र-शस्त्र तथा यंत्र आदि से कोई भी क्षति न होने का वर दिया।
इस प्रकार सभी वरों को पाकर हनुमान जी ने आगे जाकर अमित पराक्रम के जो कार्य किए वे सभी हनुमान भक्तों में प्रसिद्ध हैं। तो यह थी हनुमान जी की जन्म कथा। दोस्तों, अभिजीत मुहूर्त में हनुमान जी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है। उत्तर-पूर्व दिशा में चौकी पर लाल कपड़ा रखें और हनुमान जी के साथ भगवान श्रीराम की मूर्ति स्थापित करें। हनुमान जी को लाल और भगवान श्रीराम को पीले फूल अर्पित करें। लड्डू के साथ-साथ तुलसी दल भी अर्पित करें। पहले श्रीराम का मंत्र “राम रामाय नमः” का जाप करें और फिर हनुमान जी के मंत्र “ॐ हनुमंते नमः” का जाप करें। ऐसा करने से आपको हनुमान जी की असीम कृपा प्राप्त होगी।
Hanuman Ji Aarti
क्या आपको यह बात पता है हम लोग आरती क्यों करते हैं ? हम रोज सुबह-शाम हमारे घर में या फिर किसी भी मंदिर में आरती करते हैं। आप मंदिर में जाते हैं, बिहारी जी में जाते हैं, कोई भी मंदिर में जाते हैं, तो भगवान की आरती की जाती है। सुबह-शाम आरती की जाती है और हम अपने घर में भी आरती करते हैं। बड़े प्रेम से आरती गाते हुए आरती करते हैं। लेकिन आप जानते हैं आरती क्यों की जाती है?
कुछ लोग जानते हैं, कुछ नहीं जानते। चलिए आज हम जानते हैं आरती क्यों की जाती है। एक तो आरती करने से हम भगवान के निकट पहुंचते हैं। आरती हम घुमाकर के करते हैं, दीप प्रज्वलित करके। दीप प्रज्वलित करना मतलब अंधकार को हटाकर हम प्रकाश की ओर जा रहे हैं। दीपक जलाया, बढ़िया सुंदर पवित्र वस्त्र धारण करके भगवान के सन्मुख जाकर आरती की। एक कारण यह है कि हम भगवान के स्वामित्व प्राप्त करते हैं।
दूसरा कारण क्या है? आरती हम इसीलिए करते हैं, आरती करने से हमारा मन भी संतुष्ट होता है। भगवान को देखकर, भगवान के उस छवि को दर्शन करके हम शांत होते हैं, हम तृप्त होते हैं, हम संतुष्ट होते हैं, हम सुखी होते हैं। और आरती करने से भगवान भी हमसे प्रसन्न हो जाते हैं, भगवान हमसे खुश हो जाते हैं। और आरती करने से जो भी साधक रहें, उनकी संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
आरती करने से हमारे घर सुंदर हो जाता है। आरती में हम घंटी बजाते हैं, शंख बजाते हैं। शंख ध्वनि, घंटी की ध्वनि से घर पवित्र होता है। जहां पर शंख ध्वनि, घंटी की ध्वनि होती है, वहां पर संपूर्ण देवी-देवता विराजमान होते हैं। यह सब आरती में किया जाता है। और हम जो भी चाहते हैं, मन वांछित फल प्राप्त करना चाहते हैं, भगवान हमें वह हमारी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
आपने देखा होगा और आपने किया भी होगा, आरती के बाद देसी घी के दीपक में हम आरती करते हैं। देसी घी को जलाने से घर का वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह भी एक कारण है। बहुत सारे कारण हैं, बहुत सारे रीजन हैं। और आरती के बाद हम कपूर जलाते हैं। कपूर को जलाना ही चाहिए। कपूर जलाने से हमारे घर में देव दोष और पितृ दोष कभी नहीं लग सकता। अगर आप भी नित्य प्रति आरती के बाद कपूर जलाते हैं, कपूर द्वारा आरती करते हैं, तो आपके घर में देव दोष और पितृ दोष कभी नहीं लग सकता।
इसलिए मैं आपसे निवेदन करता हूँ, जो भी घर में आरती करते हैं, पूजा करना बहुत अच्छी बात है। और जो नहीं करते, तो आज से यह नियम बनाइए। कपूर जलाकर, देसी घी जलाकर आप आरती करें। ऐसा करने से आप सुखी होंगे, आपके घर में भगवान खुश हो जाएंगे, और आपके घर के वातावरण पर, आपके घर में रहने वाले व्यक्ति की चित्तवृत्ति शांत होगी। इसलिए आरती रोज करें। प्यार से बोलो, जय श्री राम, जय हनुमान!
( हनुमान जी की आरती हिंदी में )
“आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुधि लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।आनि संजीवन प्राण उबारे।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
पैठी पाताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखारे।
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संत जन तारे।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।। “
Hanuman Chalisa
हनुमान चालीसा हनुमान जी का पाठ है जो भक्त हनुमान जी की कृपा पाने के लिए करते हैं और वी कई करणो के लिए लोग हनुमान चालीसा को करते है। हनुमान जी की कृपा शार्धालुयो की श्रद्धा पर निर्भर करती है। हनुमान चालीसा उधार लें हमारी ज़िंदगियो मे से सब कठिनाइयाँ को।
” दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि !
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि !!
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार !
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार !!
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर..
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥1॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥2॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥3॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥4॥
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥5॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर ॥6॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया ॥7॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥8॥
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे ॥9॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥10॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥11॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥12॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा ॥13॥
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥14॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥15॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥16॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥17॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥18॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥19॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥20॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना ॥21॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै ॥22॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥23॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥24॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥25॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥26॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥27॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥28॥
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥29॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता ॥30॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥31॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै ॥32॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ॥33॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥34॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥35॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥36॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥37॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥38॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ॥39॥
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ “
Hanuman Chalisa Padhne Ke Fayde
हनुमान चालीसा पढने के बहुत फायदे हैं। श्रीराम ने हनुमान जी को कलियुग के अंत तक धरती पर ही रहने का आदेश दिया है। हनुमान जी अमर हैं और धरती पर ही हैं। वह अपने भक्तों और साधकों पर सदैव कृपालू रहते हैं और उनकी हर इच्छा पूरी करते हैं। हनुमान जी की कृपा से ही तुलसीदास जी को भगवान राम के दर्शन हुए थे।
हनुमान जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जहां कहीं भी राम कथा होती है, हनुमान जी वहां किसी ना किसी रूप में जरूर मौजूद होते हैं। हनुमान जी की महिमा और भक्त हितकारी प्रभाव को देखते हुए तुलसीदास जी ने हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा लिखी है। इस चालीसा का नियमित पाठ बहुत ही सरल और आसान है, लेकिन इसके लाभ चमत्कारी हैं। आइए देखते हैं हनुमान चालीसा पढ़ने के अद्भुत और चमत्कारी फायदे। हमने हनुमान चालीसा के पाठ से होने वाले सबसे बड़े फायदे के बारे में भी बताया है।
पहला फायदा:- बुरी आत्माओं, भूत-प्रेत को भगाएं , हनुमान जी महावीर हैं, अति बलशाली हैं और बुरी आत्माओं, भूत-प्रेत आदि सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर उन्हें मुक्ति प्रदान करने वाले हैं। अगर किसी डरावनी जगह पर जाएं और किसी बुरी आत्मा की अनुभूति हो तो हनुमान चालीसा पढ़ने मात्र से आसपास के भूत-प्रेत दूर भाग जाते हैं। वह हर बुरी आत्माओं का नाश करके लोगों को उससे मुक्ति दिलाते हैं। जिन लोगों को रात में डर लगता है या फिर डरावने विचार मन में आते रहते हैं, उन्हें रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
दूसरा फायदा:- शनि देव की ढैया और साढ़ेसाती का प्रभाव कम करें, हनुमान चालीसा पढ़कर आप शनि देव को खुश कर सकते हैं और साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव कम कर सकते हैं। असल में एक बार हनुमान जी ने शनि देव की रक्षा की थी और फिर शनि देव ने खुश होकर यह बोला था कि वह किसी भी हनुमान भक्तों का कोई नुकसान नहीं करेंगे और जो हनुमान जी की भक्ति करेगा उसकी शनि की वक्र दृष्टि में भी ज्यादा हानि नहीं होगी।
तीसरा फायदा:- राहु के दुष्प्रभाव से मिलेगी मुक्ति, बहुत से लोगों की कुंडली में राहु ग्रह कुछ दुष्प्रभाव डालता है और मनुष्य के जीवन को कठिनाइयों और उतार-चढ़ाव से भर देता है। ऐसे में नित्य प्रतिदिन या अपनी श्रद्धा अनुसार हनुमान चालीसा का पाठ और हनुमान भक्ति करने से राहु के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
चौथा फायदा:- रोग और दुखों से छुटकारा “नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा”। हनुमान चालीसा के इस दोहे में यह बताया गया है कि जो भी हनुमान चालीसा का पाठ करता है वह सभी प्रकार के रोग और दुखों से छुटकारा पाता है। लेकिन इसके लिए भक्ति भी सच्चे मन से की जानी चाहिए। आज के समय में बीमार होने की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
पांचवा फायदा:- आत्मविश्वास बढ़ता है, बहुत से हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले लोगों ने इस बात की पुष्टि की है और हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद अपने आत्मविश्वास को बढ़ा हुआ पाया है। अगर आपको भी हनुमान चालीसा पढ़ने से कोई फायदा हुआ है तो कमेंट करके जरूर बताएं। हनुमान चालीसा एक ऐसी कृति है जो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल और बुद्धि जागृत होती है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आकलन कर सकता है। हनुमान चालीसा पढ़ने से दिमाग तेज होता है, याददाश्त मजबूत होती है और कंसंट्रेशन पावर भी बढ़ता है। इस कारण बच्चों को और विद्यार्थियों को इसका पाठ करके इसके लाभ से अपनी बुद्धि का विकास करना चाहिए, जिसका असर बच्चों में अवश्य देखने को मिलेगा।
छठा फायदा;- बंद काम खुल्ले , दोस्तों, कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारे बहुत प्रयास करने के बावजूद हमारे बहुत से काम अटक जाते हैं और हम हमेशा अपनी किस्मत को कोसते हैं। हनुमान चालीसा का पाठ करने से मनुष्य को सभी प्रकार के कामों में सफलता मिलने लगती है क्योंकि हनुमान चालीसा के पाठ से तन और मन में पॉजिटिव एनर्जी आ जाती है। अगर किसी का कोई काम हनुमान चालीसा के पाठ से बना हो तो कमेंट करके जरूर बताएं। आजकल लोगों को बहुत इस्ट्रेस रहता है, हर काम की टेंशन रहती है। इतनी टेंशन रहती है कि रात में चैन की नींद भी नहीं आती। ऐसे में हनुमान चालीसा का पाठ निश्चित ही मानसिक शांति दिलाएगा और इस्ट्रेस को कम करेगा।
सातवा फायदा;- आर्थिक परेशानी में करें हनुमान चालीसा का पाठ:- हनुमान चालीसा में कहा गया है कि हनुमान जी अष्ट सिद्धि और नवनिधि के दाता हैं। जो व्यक्ति नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसकी हर मनोकामना हनुमान जी पूरी करते हैं चाहे वह धन-संपत्ति ही क्यों न हो। जब कभी भी आपको आर्थिक संकट का सामना करना पड़े, मन में हनुमान जी का ध्यान करके हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दीजिए। मित्रों, वैसे हमने अष्ट सिद्धि और नवनिधि पर भी वीडियो बनाया है। इस वीडियो को देखने के बाद आप इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में जाकर उसकी लिंक पर क्लिक करके वह वाला वीडियो भी देख सकते हैं।
आठवाँ फायदा;- हनुमान चालीसा के पाठ से शारीरिक बल में बढ़ोतरी होती है। इसी कारणवश हर अखाड़े में या जिम में महावीर हनुमान की मूर्ति या फोटो जरूर होती है। शारीरिक व्यायाम करने वाले और बॉडी बिल्डिंग का शौक रखने वाले सभी लोगों के लिए हनुमान जी इष्टदेव और इंस्पिरेशन हैं। ऐसे में हनुमान चालीसा का पाठ शारीरिक बल और क्षमता को बढ़ाता है।
नौवाँ फायदा;- आइए अब जानते हैं हनुमान चालीसा पाठ का सबसे बड़ा लाभ क्या है:
मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य माना गया है मुक्ति, यानी शरीर त्याग के बाद परमधाम में स्थान। हनुमान चालीसा में बताया गया है “अंतकाल रघुबरपुर जाई जहां जन्म हरि-भक्त कहाई और देवता चित्त न धरई हनुमत सेइ सर्ब सुख करई”, यानी जो व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है और उनकी पूजा और हनुमान चालीसा का पाठ नियमित करता है, उसके परमधाम जाने का मार्ग सरल हो जाता है। यानी कि मृत्यु के बाद जब हमारी आत्मा इस शरीर को छोड़ देगी, तब हमारी आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति कर प्रभु के परमधाम में स्थान प्राप्त करने के लिए हमें हनुमान चालीसा का पाठ करना एक आसान काम है। क्योंकि कलियुग में हनुमान जी सबसे जल्दी मनोकामना को सुनते हैं और हमारी आत्मा को जीवन-मरण के कुचक्र से छुड़ाकर मुक्ति प्रदान कराने वाले हैं।
सभी से रिक्वेस्ट है कि कमेंट में हनुमान जी का जयकारा जरूर लगाएं। जय श्री राम, जय हनुमान!