एक समय की बात है, एक गांव में एक बुढ़िया माई अपने परिवार के साथ रहती थी। बुढ़िया माई विष्णु भगवान की परम भक्त थी। वह हमेशा दोनों पक्षों की एकादशियों का व्रत करती थी और कथा कहानी सुनती थी। उन्होंने कभी भी व्रत में गणेश भगवान की कथा न कही न सुनी। इसी कारण उनका व्रत अधूरा रह गया। पर बुढ़िया माई को इस बात का पता नहीं था। उनको लगता था कि वह तो पूरा व्रत कर रही हैं और उनके व्रत के पुण्य से उनको बैकुंठ लोक की प्राप्ति जरूर होगी।
देखते ही देखते बुढ़िया माई की मृत्यु हो गई। उन्हें लेने यमलोक के दूत आए। वह देखकर घबरा गईं और बोलीं, “मैंने जीवन भर विष्णु भगवान की भक्ति श्रद्धा भाव से किया, एकादशी का व्रत किया। मुझे तो लेने बैकुंठ लोक का विमान आएगा, मैं आपके साथ नहीं चलूंगी।” इतना कहकर बुढ़िया माई रोने लगीं और विष्णु भगवान को पुकारने लगीं। विष्णु भगवान गरुर पर सवार होकर बुढ़िया माई के पास आए और बोले, “बुढ़िया माई, तूने तो पूरी श्रद्धा से व्रत किया पर तुमने व्रत में कभी भी गणेश भगवान की कथा न कही न सुनी। इसी कारण तेरा व्रत अधूरा है।”
बुढ़िया माई विष्णु भगवान से जीवनदान मांगने लगीं ताकि वह एकादशी का व्रत करके उसका पूरा पुण्य प्राप्त कर सकें। इस प्रकार बुढ़िया माई को विष्णु भगवान ने दो साल के लिए फिर जीवित कर दिया। अब बुढ़िया माई जीवित होते ही गणेश भगवान का नित नियम करना चालू कर दिया। एकादशी व्रत करतीं तो एकादशी व्रत की कथा सुनतीं और अंत में गणेश भगवान की कथा सुनने लगीं। इस प्रकार दो साल में बुढ़िया माई ने चार एकादशी व्रत पूरे कर लिए।
गणेश भगवान की कृपा से बुढ़िया माई को एकादशी का पूरा पुण्य प्राप्त हुआ। बुढ़िया माई की तपस्या से गणेश भगवान प्रसन्न हुए और बुढ़िया माई के सामने प्रकट होकर बोले, “बुढ़िया माई, तुमने मेरे नित नियम के साथ ही व्रत में श्रद्धा पूर्वक कथा सुनी है। इसलिए मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक तुम्हारे इस तपस्या का गुणगान लोग करते रहेंगे। साथ ही एकादशी व्रत में तुम्हारी इस भक्ति की कथा को जो भी मनुष्य प्रेम पूर्वक सुनेगा, उसको व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होगा।”
गणेश भगवान बुढ़िया माई पर प्रसन्न होकर उनके घर को धन से भर दिया और साथ ही रिद्धि-सिद्धि का वास करके अंतरध्यान हो गए। दो साल बीतने पर बुढ़िया माई की मृत्यु हुई। इस बार उन्हें लेने बैकुंठ लोक का विमान आया। बुढ़िया माई को पूरे मान-सम्मान के साथ बैकुंठ लोक ले जाया गया। इस प्रकार गणेश भगवान की कृपा से बुढ़िया माई का घर अन्य धन से भर गया और मरने के बाद बैकुंठ लोक का सुख मिला।
हे गणेश जी महाराज, जैसे आपने बुढ़िया माई पर प्रसन्न होकर उनके व्रत को पूरा किया और उनके घर को धन से भर दिया, वैसे ही एकादशी व्रत करने वालों को भी पूरा फल देकर उनका घर अन धन से भर देना। प्रेम से बोलिए गणेश भगवान की जय हो, विष्णु भगवान की जय हो।
गणेश जी की कहानी खीर वाली:-
नमस्कार दोस्तों, हम आपके लिए गणेश जी महाराज और उनकी खीर की कहानी लेकर आए हैं।
एक समय की बात है, गणेश जी महाराज ने पृथ्वी पर मनुष्यों की परीक्षा लेने का विचार किया। पृथ्वी भ्रमण के लिए गणेश जी ने एक बालक का रूप धारण किया और अपने एक हाथ में चम्मच में दूध ले लिया और दूसरे हाथ में एक चुटकी चावल ले लिए। वे गली-गली घूमने लगे और आवाज लगाने लगे, “कोई इंच चावल और दूध से मेरी खीर बना दो, कोई इंच चावल और दूध से मेरी खीर बना दो।”
गांव में कोई भी उन पर ध्यान नहीं दे रहा था और सभी हंस रहे थे। वे सोच रहे थे कि एक चम्मच दूध और एक चुटकी चावल की खीर कैसे बन सकती है। गणेश जी ऐसे ही एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहे, लेकिन कोई भी उनकी खीर बनाने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे ही सुबह से शाम हो गई।
अब गणेश जी ने सोचा, “कोई भी मेरी खीर नहीं बना रहा, अब मैं क्या करूं?” तभी वहां एक बुढ़िया अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी थी। वह गणेश जी को देखकर बोली, “बेटा, तेरा खीर बनाने का सामान मुझे दे दे, मैं तेरी खीर बनाती हूं।”
गणेश जी बोले, “माई, तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो, उसे खीर बनाने के लिए ले आओ।” बुढ़िया ने सोचा कि बच्चे का मन रखने के लिए सबसे बड़ा बर्तन ले आती हूं। बुढ़िया माई घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर बाहर आई। गणेश जी ने चम्मच से दूध और चुटकी से चावल डालना शुरू किया। तब बुढ़िया माई के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। यह क्या चमत्कार है, कुछ समझ नहीं आ रहा था। देखते ही देखते पतीला दूध से भर गया।
बुढ़िया माई ने उस पतीले को चूल्हे पर चढ़ाकर खीर बनाना शुरू कर दिया। तब गणेश बोले, “माई, तुम खीर बनाओ, मैं स्नान करके आता हूं। मैं वापस आकर खीर खा लूंगा।” बुढ़िया माई बोली, “बेटा, इतनी ढेर सारी खीर का मैं क्या करूंगी?” तब बालक गणेश बोले, “माई, तुम सारे गांव को खीर खाने का न्योता दे दो।”
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बुढ़िया माई ने कहा, “ठीक है, मैं पूरे गांव को कह देती हूं।” खीर की खुशबू धीरे-धीरे पूरे गांव में फैलने लगी। बुढ़िया माई ने घर-घर जाकर खीर खाने का न्योता दे दिया, “आज मेरे घर खीर का प्रसाद बना है, आप चखने आना।” पड़ोसन ने कहा, “अम्मा, इतने लोगों को खीर कहां से खिलाओगी?” लोग उस पर हंसने लगे। “बुढ़िया के घर में खाने को तो दाना नहीं है और सारे गांव को खीर खिलाने की बात कर रही है। चलो, चल कर देखते हैं कि बुढ़िया कौन सी खीर खिलाने वाली है।” धीरे-धीरे लोग बुढ़िया के घर आने लगे। देखते ही देखते गांव इकट्ठा हो गया।
जब बुढ़िया माई की बहू को इस दावत की बात पता चली, तो वह रसोई में पहुंची और दूध से भरा पतीला देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। वह सोचने लगी, “इस पतीले की खीर सारे गांव में बांटी तो मेरे लिए कुछ भी नहीं बचेगा।” ऐसा सोचकर बुढ़िया माई की बहू ने एक कटोरी में खीर निकाली और दरवाजे के पीछे बैठकर खीर खाने की तैयारी करने लगी। खाने से पहले उसने कहा, “गणपति जी, यह स्वीकार करें।” ऐसा कहकर वह खीर खाने लगी।
छोटी अम्मा की बहू के लगाए इस भोग से गणेश जी प्रसन्न हो गए। जब बाल गणेश स्नान करके वापस आए, तो बुढ़िया माई बोली, “बेटा, तुम स्नान करके आगे आओ, तुम्हें खीर परोसती हूं।” तब बाल गणेश बोले, “माई, मेरा पेट तो खीर से भर गया। अब तुम खीर खा लो, अपने परिवार को खिलाओ और सारे गांव को खीर खिलाओ।”
तब बुढ़िया माई पूछने लगी, “बेटा, तुम यह आखिर कौन हो?” गणेश जी महाराज बोले, “जब तुम्हारी बहू ने रसोईघर के दरवाजे के पीछे बैठकर मुझे भोग लगाया था, तब मैंने खीर खाली।” तब बुढ़िया माई समझ गई, “यह जरूर गणेश जी महाराज हैं।” वह हाथ जोड़कर उनके आगे खड़ी हो गई। गणेश जी महाराज बोले, “बुढ़िया माई, तुम भी खाओ, अपने परिवार को खिलाओ, पूरे गांव को खीर खिलाओ और उसके बाद बची हुई खीर को चार पतीलों में रखकर अपने घर के चार कोणों में रख देना।”
बुढ़िया माई ने पूरे गांव को खीर खिलाई और बची हुई खीर चार बर्तनों में करके अपने घर के चारों कोणों में रख दी और सो गई। जब वह सुबह उठी, तो उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। “हे गजानंद भगवान, यह क्या देख रही हूं? पतीलों में खीर के स्थान पर हीरे, मोती और जवाहरात भरे हैं। आपने मुझ पर बड़ी कृपा करी है।” बुढ़िया माई को अपनी दयालुता का फल प्राप्त हुआ था। उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई थी।
गणेश जी की छोटी सी कहानी
एक समय की बात है, एक गांव में एक किसान रहता था। उसकी दो बेटियां थीं, कमला और विमला। कमला की शादी अमीर परिवार में हुई थी, पर विमला की शादी गरीब परिवार में हुई थी। अमीर होने के कारण कमला घमंडी हो गई थी। उसने विमला को अपने घर काम पर रख लिया। विमला उसके घर का सारा काम करती और बदले में कमला उसे बचा हुआ खाना दे देती थी। विमला सीधी-सादी थी, नेम-धर्म से रहती थी। विमला गणेश भगवान का नित नियम भी निभाती थी। वह जो भी खाना लाती, उसे पहले गणेश भगवान को भोग लगाती, उसके बाद ही वह खाती या अपने परिवार को देती थी। एक दिन कमला के घर में खाना नहीं बचा। विमला ने जंगल से कुछ आंवले तोड़े, उसे उबालकर उसने पहले गणेश भगवान को भोग लगाया, फिर बचा हुआ खाकर सो गई।
उसी रात गणेश जी ने उसकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए ,एक बूढ़ी औरत का भेस बनाकर विमला के घर का दरवाजा खटखटाया। विमला ने उठकर दरवाजा खोला तो देखा कि एक बुढ़िया खड़ी है। विमला ने पूछा, “मां जी, आपको क्या चाहिए?” बुढ़िया ने कहा, “मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है, कुछ खाने को दे दो।” विमला ने कहा, “मां जी, मैं बहुत गरीब हूं, खाने को कुछ भी नहीं है। बस उबले हुए आंवले रखे हैं, आप खाएंगी?” गणेश भगवान बुढ़िया माई के रूप में बोले, “हां, लाओ।
तब विमला ने भोग में चढ़ाए हुए आंवले बुढ़िया माई को खाने के लिए दे दिए। खाने के बाद बुढ़िया माई घर जाने में असमर्थ दिखाई दीं। तब विमला बोली, “आप चिंता मत कीजिए, आज आप यहीं पर सो जाइए, कल सवेरे चले जाना।” बुढ़िया माई खा-पीकर वहीं सो गई। थोड़ी देर बाद बुढ़िया माई की नींद खुली। उन्होंने कहा, “बेटी, मेरा पेट खराब हो गया है।” विमला ने कहा, “आप अंधेरे में कहां जाएंगी, यहीं किसी कोने में निपट लीजिए और अपना हाथ मेरे बालों में पोंछ लीजिए, सुबह उठकर मैं साफ कर लूंगी।” बुढ़िया माई ने वैसा ही किया।
जब सुबह हुई तो बुढ़िया माई वहां नहीं थीं। विमला को लगा शायद मैंने सपना देखा होगा। ऐसा सोचकर वह नहाने के लिए तालाब की ओर चली गई। जब वह नहाने लगी तो उसके बालों में से सोना झड़ने लगा। आसपास के लोग देखकर हैरान हो गए। अब विमला को रात की बात याद आई। वह दौड़ी-दौड़ी घर आई। घर आकर उसने देखा कि घर के अंदर चारों ओर सोने के सिक्के बिखरे पड़े हैं। वह खुश होकर गणेश भगवान की जयकारा लगाने लगी। उसने अपने बेटे को मौसी के घर से तराजू लाने के लिए भेजा।
उसका बेटा मौसी के पास जाकर तराजू मांगने लगा। मौसी ने पूछा, “तराजू का क्या करेगा?” बच्चा भोला-भाला था, उसने बताया, “मां सोने का सिक्का नापेगी।” कमला ने कहा, “घर में खाने को दाना नहीं और सोना नापने की बात कर रहा है।” सच्चाई का पता लगाने के लिए उसने तराजू के नीचे लट्ठा लगा दिया। बच्चा तराजू लेकर चला गया।जब सोना नापने का काम खत्म हो गया तो तराजू मौसी को लौटाने आया। कमला ने तराजू को उलट-पुलट कर देखा तो उसके पीछे एक सोने का सिक्का चिपका हुआ मिला।
वह हैरान रह गई और उसे विश्वास हो गया कि विमला बहुत ही धनी हो गई है। इसलिए काम पर भी नहीं आ रही है। वह दौड़ी-दौड़ी बहन के घर पहुंची और उससे पूछा, “तुम्हारे पास इतना धन कहां से आया?” विमला सरल स्वभाव की थी, उसने सारी बातें अपनी बहन को बता दीं। कमला को लालच आ गया। कमला लालचवश गणेश भगवान का नित नियम निभाने लगी और रोज जंगली आंवले का गणेश भगवान को भोग लगाने लगी। एक दिन गणेश भगवान उसे सबक सिखाने के लिए बूढ़ी औरत का भेस धरकर उसके घर गए। वह बुढ़िया को बैठाकर वही उबला हुआ आंवला दिया। आंवला खाकर बुढ़िया माई का पेट खराब हो गया।
उन्होंने कमला के सारे घर को गंदा कर दिया।जब सुबह कमला की नींद खुली तो उसने देखा सारा घर गंदगी से भरा पड़ा है और बदबू कर रहा है। कमला गंदगी को साफ करने लगी पर गंदगी बढ़ती ही जा रही थी। वह थक-हारकर विमला के घर गई। उसने विमला को सारी बात बताई। विमला ने कहा, “तुम्हारे पास खाने का इतना सामान था, फिर भी तुमने उबले हुए आंवले गणेश भगवान को खिलाए। इसी कारण गणेश भगवान का कोप तुम पर हुआ है।” कमला को अपनी गलती का एहसास हो गया। वह गणेश भगवान से क्षमा मांगने लगी। गणेश भगवान ने उसे माफ कर दिया और अपनी माया समेट ली।
गणेश जी की कथा
एक समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। वह बहुत ही अमीर था। उसके घर एक ब्राह्मणी रोटी लेने आया करती थी। घर के अंदर घुसते ही पोल के ऊपर गणेश भगवान का मंदिर था। वह गणेश भगवान को रोटी का एक टुकड़ा भोग लगा देती थी। इसी तरह करते-करते बहुत दिन हो गए। एक दिन गणेश भगवान ने सोचा कि यह अपने को रोज भोग लगाती है, इस कारण मुझे उसे कुछ ना कुछ उपहार तो देना ही पड़ेगा।
गणेश भगवान ने एक दिन उसके थाली में हीरे-मोती भर दिए। ब्राह्मणी प्रसन्न होकर थाली लेकर अपने घर आ गई। अगले दिन वह साहूकार के घर रोटी लेने नहीं गई। साहूकार ने ब्राह्मणी को बुलावा भेजा कि बाई जी, रोटी लेने के लिए क्यों नहीं आई? ब्राह्मणी ने कहा कि मुझ पर तो गणेश भगवान प्रसन्न हुए हैं। बहुत वर्ष तक रोटी दूसरे के घर की खाई, अब अपनी रोटी खाऊंगी।
साहूकार ने यह बात सुनकर मन में बहुत नाराज हुई कि गणेश भगवान ब्राह्मणी के ऊपर तो प्रसन्न हुए परंतु मेरे ऊपर नहीं। तब साहूकारनी ने गणेश भगवान की मूर्ति को हटाकर बाहर फेंक दिया। इधर सेठ जी के दुकान में धंधा-पानी चलना बंद हो गया। एक दिन सेठ जी की नजर पोल के मंदिर पर गई तो सेठानी जी से पूछा कि गणेश भगवान कहां गए।
सेठानी ने कहा, “ऐसे गणेश भगवान का क्या करें, जो ब्राह्मणी पर तो प्रसन्न हुए लेकिन हमारे ऊपर नहीं। इस कारण मैंने गणेश भगवान को हटाकर पोखरे में फेंक दिया।” सेठ जी ने कहा, “यह तुमने क्या किया? मेरे तो सारे धन-पानी का धंधा बंद हो गया। गणेश भगवान को कहां फेंका? मुझे बताओ, मैं वापस लेकर आता हूं।” साहूकार जी गणेश भगवान को वापस लेने के लिए गए, तो गणेश भगवान इतने भारी हो गए कि उठे ही नहीं। साहूकार जी ने कहा, “हे प्रभु, मुझसे क्या गलती हो गई है? मुझे क्षमा कर दीजिए और मेरे साथ मेरे घर पर चलिए।
पर गणेश भगवान और भी भारी होते गए और बोले, “मैं नहीं चलूंगा। पहले साहूकारनी को बुलाकर लाओ। वह यहां आकर नाक रगड़े, माफी मांगे, तो मैं चलूंगा। मुझे हमेशा सवा शेर का चूरमा करके भोजन कराना होगा, तभी मैं चलूंगा। “साहूकार साहूकारनी को लेकर आए, नाक रगड़वाई और माफी मंगवाई। सवा शेर का चूरमा चढ़ाने का वादा करवाया, तब गणेश भगवान हल्के हो गए। साहूकार गणेश भगवान को लाकर पोल में बैठा दिया। अब साहूकार का धंधा-पानी वापस से शुरू हो गया।