बृहस्पतिवार व्रत कथा। वृहस्पतिवार के दिन विष्णु जी की पूजा होती है। पति गुरु को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है। गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र व अन्य वांछित फल प्राप्त होते हैं। यह व्रत अत्यंत फलदाई है। बृहस्पतिवार व्रत करने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ( Brihaspati var vrat katha )
पौराणिक कहानी के अनुसार, प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहां दूसरे देशों में व्यापार करता था, वहीं अधिक धन कमाता था और जी खोलकर दान भी करता था। परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी, वह किसी को भी कुछ नहीं देती थी। जब व्यापारी दूसरे देश में व्यापार करने गया, तब उसकी पत्नी ने एक साधु से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी ने वृहस्पतिदेव से कहा, “महाराज, मैं इस दान पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो और मैं आराम से रह सकूं।”
वृहस्पतिदेव ने कहा, “हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो। संतान और धन से कोई दुखी होता है? अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ। कुवांरी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ। पुण्य कार्य कराने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है।”
इन बातों से व्यापारी की पत्नी खुश नहीं हुई और उसने कहा, “मुझे ऐसे धन की कोई आवश्यकता नहीं है जिसे मैं दान दूं।”
वृहस्पतिदेव ने कहा, “यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम बृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनवाने के लिए कहना, और मांस-मदिरा खाना। अपने कपड़े धोना। ऐसा करने पर तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जायेगा।” इतना कहकर वृहस्पतिदेव अंतर्धान हो गए।
व्यापारी की पत्नी ने वृहस्पतिदेव के कहे अनुसार बृहस्पतिवार को वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई। उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो गया है। उसने अपनी पुत्री को शांति के साथ दूसरे नगर में जाकर बसाया। वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और इस तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
एक दिन उसकी पुत्री ने खाने की इच्छा प्रकट की। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटते-काटते एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपने पूर्व दिशा पर विचार करने लगे। तभी एक साधु उनके पास आए और बोले, “कि मनुष्य, तुम इस जंगल में किस चिंता में बैठे हो?”
तब व्यापारी बोला, “महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।” इतना कहकर उसने अपनी कहानी सुनाई और रो पड़ा। वृहस्पतिदेव ने कहा, “बेटा, तुमने वृहस्पतिदेव का अपमान किया था, इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ। लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता ना करो। तुम गुरुवार के दिन वृहस्पतिदेव का पूजन करो और कथा सुनो। इससे तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे।”
गुरुवार को व्यापारी ने कथा हेतु चना और गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटा। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगीं। परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया। अगले दिन वहां के राजा ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया और पूरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोजन किया। राजा की आज्ञा अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोजन करने गया। लेकिन व्यापारी और उसकी पुत्री तनिक विलंब से पहुंचे, अतः दोनों को राजा ने अपने महल में ले जाकर भोजन कराया।
लौटकर आने पर उन्होंने देखा कि उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है। रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ कि उन्होंने ही हार चुराया है। राजा की आज्ञा से दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर लिया गया। कैद में दोनों अत्यंत दुखी हुए। वहां उन्होंने वृहस्पतिदेव का स्मरण किया। वृहस्पतिदेव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार के दिन कैद खाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे मिलेंगे। उनसे तुम चना और गुड़ लाकर विधिपूर्वक वृहस्पतिदेव की पूजन करना, तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे।
गुरुवार को कैद खाने के द्वार पर उन्हें दो पैसे मिले। बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी। व्यापारी ने उसे बुलाकर गुड़ और चना लाने के लिए कहा। उस स्त्री ने कहा, “मैं अपनी बहू के लिए गहने ले जा रही हूं, मेरे पास समय नहीं है।” इतना कहकर वह चली गई। थोड़ी देर बाद एक और स्त्री निकली। व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा, “बहन, मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी है। मुझे दो पैसे का गुड़ और चना ला दो।” वृहस्पतिदेव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली, “भाई, मैं तुम्हें अभी गुड़ और चना लाकर देती हूं। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है, मैं उसके लिए कफन ले जा रही थी, लेकिन पहले तुम्हारा काम करूंगी।”
वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़ और चना ले आई और वृहस्पतिदेव की कथा सुनी। कथा समाप्त होने पर वह स्त्री कफन लेकर अपने घर चली गई। घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। स्त्री ने कहा, “मुझे अपने लड़के का मुख देखने दो।” अपने पुत्र का मुख देखकर उसने उसके मुंह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुनः जीवित हो गया।
पहली स्त्री जिसने वृहस्पतिदेव का निरादर किया था, जब वह अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्रवधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला, वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मारी कि वह घोड़े से गिरकर मर गया। यह देखकर स्त्री रो-रोकर वृहस्पतिदेव से क्षमायाचना करने लगी। वृहस्पतिदेव साधु वेश में वहां पहुंच कर कहने लगे, “हे देवी, तुमने अधिक बदलाव करने की आवश्यकता नहीं है। यह वृहस्पतिदेव का अनादर करने के कारण हुआ है। तुम वापस जाकर मेरे भक्तों के साथ कथा सुनो, तब तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी।”
उस स्त्री ने व्यापारी से माफी मांगी और कहानी सुनी। कहानी सुनने के उपरांत उसने प्रसाद और चरणामृत लेकर अपने घर वापस आई। घर आकर उसने चरणामृत अपने मृत पुत्र को दिया और उसके प्रभाव से उसका पुत्र जीवित हो गया। राजा ने व्यापारी और उसकी पुत्री को जेल से मुक्त कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर उनकी पुत्री का विवाह कराया।
व्यापारी ने फिर से नियमित रूप से बृहस्पतिवार का व्रत करना प्रारंभ किया और दूसरों को भी इसके प्रति जागरूक किया। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं। सच्चे हृदय से वृहस्पतिदेव का मनन करते हुए जयकारा बोलना चाहिए आपको गुरुवार व्रत कथा कैसी लगी मुझे कमेंट मे जरूर बताएं (guruvar vrat katha in hindi)