आज हर चीज के लिए सबको सबूत चाहिए, प्रेम का भी सबूत चाहिए, लेकिन भगवान देने को तैयार हैं। परंतु, आप पहले भगवान से प्रेम तो करें। भगवान अपने भक्तों से अत्यधिक प्रेम करते हैं और उनके लिए कुछ भी कर सकते हैं। ऐसी ही कुछ भगवान और भक्त की सच्ची कहानी हम आपके लिए लेकर आए हैं उम्मीद है आपको भगत और भगवान की यह कहानियां पसंद आएंगी ।
भक्त भगवान की प्रेरणादायक कहानी
एक बार एक राजा ने भगवान श्री कृष्ण का मंदिर बनवाया और उसमें पूजा पाठ करने के लिए एक पुजारी को नियुक्त किया। पुजारी जी बड़े प्रेम भाव से भगवान की सेवा करने लगे। भगवान की पूजा पाठ और सेवा करते हुए पुजारी की उम्र बीत गई। राजा रोज़ वहां दर्शन के लिए आता था, लेकिन इससे पहले वह अपने सेवक के साथ एक फूलों की माला भेजता था, जिसे पुजारी भगवान को पहनाते थे। जब राजा दर्शन को आते, तो आशीर्वाद स्वरूप भगवान की वही माला राजा को देते थे।
रोज़ का यही नियम था। एक दिन, किसी कारणवश राजा मंदिर नहीं जा सका, उसने सेवक के हाथ माला भिजवाई और पुजारी को संदेश भिजवाया कि वह मंदिर नहीं आ पाएगा। पुजारी ने भगवान को माला पहनाई। थोड़ी देर बाद पुजारी के मन में विचार आया कि उसे भगवान की सेवा करते हुए उम्र बीत गई है, लेकिन उसने आज तक वह माला नहीं पहनी है। पुजारी ने सोचा कि भगवान ने आज मुझ पर कृपा करी है, तो क्यों न यह माला मैं ही पहनूं। ऐसा सोचकर पुजारी ने वह माला भगवान के गले से उतारकर खुद पहन ली।
अचानक से सेवक ने आवाज दी कि राजा की सवारी मंदिर पहुंचने वाली है। सेवक की आवाज सुनकर और राजा के अचानक आने की सूचना पाकर पुजारी जी घबरा गए कि कहीं राजा ने मुझे माला पहने देख लिया तो क्रोधित होंगे और मुझे दंड देंगे। ऐसा सोचकर पुजारी जी ने वह माला अपने गले से निकालकर भगवान को फिर से पहना दी। जब राजा मंदिर में आए, तो उन्होंने वही माला भगवान के गले से निकालकर खुद पहनी।
जैसे ही राजा ने माला पहनी, तो उसमें राजा को एक सफेद बाल दिखाई दिया। राजा को सारा माजरा समझ आ गया कि पुजारी ने पहले खुद माला पहनी थी और जब वह आया, तो उसे पहना दी। यह सोचकर राजा को गुस्सा आया और उन्होंने पुजारी से पूछा कि यह सफेद बाल किसका है। पुजारी जी बूढ़े थे और उनके बाल भी सफेद थे। पुजारी ने सोचा कि अगर उसने सच बताया तो राजा उसे अवश्य दंड देगा। अतः पुजारी ने कहा कि यह तो भगवान का बाल है।
इस पर राजा को बहुत गुस्सा आया कि पुजारी झूठ बोल रहा है। भला मूर्तियों के बाल कब से सफेद होने लगे? राजा ने पुजारी से कहा कि वह कल श्रृंगार के समय आएगा और देखेगा कि भगवान के बाल काले हैं या सफेद। अगर भगवान के बाल काले निकले, तो पुजारी को मृत्यु दंड दिया जाएगा। राजा यह कहकर चला गया।
राजा के जाते ही पुजारी भगवान के सामने रोने लगा और विनती करने लगा कि प्रभु, मैं जानता हूं कि मैंने आपके सामने झूठ बोलने का अपराध किया है। आपकी सेवा करते-करते बूढ़ा हो गया हूँ। यह छोटी सी लालसा थी कि आपको चढ़ी हुई माला पहनूं। इसी लालसा में यह अपराध हुआ है। कृपया मुझे बचाइए नहीं तो कल राजा मुझे फांसी पर चढ़ा देगा। पुजारी सारी रात रोते-रोते मंदिर में ही सो गया।
सुबह हुई, राजा आया और भगवान का श्रृंगार स्वयं करने के लिए बोला। पुजारी डर के मारे एक कोने में खड़ा था। राजा ने जैसे ही ठाकुर जी का मुकुट हटाया, तो आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि ठाकुर जी के सभी बाल सफेद थे। राजा को लगा कि पुजारी ने जान बचाने के लिए बालों को सफेद रंग से रंग दिया होगा। अतः राजा ने बालों की जांच करने के लिए एक बाल पकड़ कर जोर से खींचा, तो वहां से रक्त की धार बहने लगी।
यह सब देखकर राजा घबरा गया और भगवान के चरण पकड़ लिए और क्षमा याचना करने लगा। तभी मूर्ति से आवाज आई कि राजा, तुमने आज तक मुझे मूर्ति ही समझा, इसीलिए मैं आज भी तुम्हारे लिए मूर्ति हूँ। पुजारी मुझे साक्षात भगवान समझता है। उसकी श्रद्धा की लाज रखने के लिए और तुझे समझाने के लिए मुझे अपने बाल सफेद करने पड़े और रक्त की धार बहानी पड़ी। राजा ने भगवान और पुजारी दोनों से माफी मांगी और अपने राजमहल लौट गया। अगर मान लो तो भगवान हैं, और ना मानो तो पत्थर। अगर मन में सच्ची श्रद्धा हो, तो भगवान पत्थर में भी सजीव होकर भक्तों से मिलने आ जाते हैं।
Bhakti Kahani in Hindi
एक समय की बात है, यमुना पार के एक गांव में दो स्त्रियां रहा करती थीं। एक का नाम मंगला था और दूसरी स्त्री का नाम सुमंगला। मंगला और सुमंगला दोनों रोज यमुना पार से नाव में बैठकर वृंदावन आतीं और जगह-जगह घूमकर सब्जी बेचा करतीं। “सब्जी लेलो, सब्जी ताजी-ताजी, हरी-हरी सब्जी,” वे ऐसे ही रोज सुबह से शाम तक सब्जियां बेचा करतीं। जब मंगला और सुमंगला की सारी सब्जियां बिक जाया करतीं, तो वे दोनों यमुना किनारे बैठ जाया करतीं। वे अपने घर से रोटी और माखन भोजन के लिए लाया करतीं और यमुना किनारे पेड़ की छांव में बैठकर भोजन खातीं और नाव में बैठकर अपने घर चली जाया करतीं।
मंगला और सुमंगला वृंदावन के यमुना पार की थीं, पर वे भगवान श्री कृष्ण को नहीं जानती थीं। भक्ति क्या होती है, उन्होंने कभी जानी नहीं थी। वे तो केवल सब्जियां बेचकर गुजारा करना और अपना पेट भरना जानती थीं। एक दिन मंगला और सुमंगला सब्जी बेचने वृंदावन आईं और आज उनकी सब्जी जल्दी बिक गई।
“अरे बहन मंगला, आज तो हमारी सब्जियां और दिनों से काफी जल्दी बिक गईं,” सुमंगला बोली।
“हाँ बहन सुमंगला, आज तो काफी जल्दी सब्जियां बिक गईं। अब बताओ, अब क्या करें?” मंगला ने पूछा।
“हाँ बहन, अब घर जाकर भी हम क्या करेंगे? बहन सुमंगला, देखो सामने वह मंदिर में कथा हो रही है।”
“अरे बहन मंगला, यह कथा क्या होती है?”
“बहन, यह तो मुझे भी नहीं पता कि कथा क्या होती है, पर सब लोग कहते हैं कि कथा होती है। चलो, आज हम भी सुन लेंगे कथा क्या होती है।”
मंगला और सुमंगला दोनों मंदिर में कथा सुनने के लिए जाने लगीं और भक्तों के बीच बैठकर कथा सुनने लगीं। कथा में गुरुजी प्रेम से भगवान की चर्चा सुना रहे थे। “भक्तों, जिसने भगवान से प्रेम नहीं किया, उसका जीवन बेकार है। जिसका प्रेम श्री कृष्ण के चरणों में नहीं हुआ, उसका जीवन बेकार है। भगवान को प्राप्त करना ही इस मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। यह मनुष्य जीवन सिर्फ हमें भगवान की प्राप्ति के लिए मिला है, पर इस संसार में सब मनुष्य पैसा इकट्ठा करने में लगे हैं। भूल गए कि इस जगत में आने का तुम्हारा उद्देश्य क्या था।”
गुरुजी ने जब इस तरह समझाया, तो मंगला और सुमंगला बहुत प्रभावित हुईं।
“बहन सुमंगला, देखो गुरुजी ने आज क्या कहा है कि भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अगर प्रेम नहीं हुआ तो यह जीवन बेकार है,” मंगला ने कहा।
“तो बहन मंगला, क्या हमारा जीवन बेकार चला जाएगा?” सुमंगला ने पूछा।
“हाँ बहन, लगता तो ऐसा ही। बहन, तू बता, तूने कभी श्री कृष्ण को देखा है?” मंगला ने पूछा।
“अरे बहन, मैं तो तेरे साथ ही रहती हूँ। भला मैंने कहाँ भगवान को देखा है?” सुमंगला ने उत्तर दिया।
“बहन, तो यह बताओ भगवान कहाँ मिलेंगे?” मंगला ने पूछा।
मंगला और सुमंगला आपस में चर्चा कर ही रही थीं कि इतने में एक संत वहां से गुजर रहे थे।
“बहन, मुझे लगता है भगवान साधु-संतों के पास जरूर होंगे। तो चलो, इनके पास से भगवान को लेकर आते हैं,” मंगला ने कहा।
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वह साधु अपना झोला और सामान यमुना किनारे रखकर स्नान करने लगे। मंगला और सुमंगला दोनों यमुना किनारे गईं और साधु का झोला चुपके से उठाकर वहां से आने लगीं। जब दोनों ने साधु के झोले में देखा, तो उनको एक डब्बा मिला। उन्होंने जैसे ही डब्बा खोला, तो उसके अंदर लड्डू गोपाल जी बैठे थे। लड्डू गोपाल को देखकर सुमंगला बोली, “बहन मंगला, मिल गए भगवान, यह बैठे हैं भगवान।”
लड्डू गोपाल को देखकर मंगला रोने लगी, “अरे बहन मंगला, तू रो क्यों रही है? मिल तो गए भगवान।”
“हे भगवान, आपको बाबा जी ने इतने से डब्बे में बंद कर रखा है और देखो तो सही, भगवान का पांव टेढ़ा है। मुझे तो लगता है ये बाबा भगवान को डराता-धमकाता है। प्रभु, अभी तो बाबा यहां नहीं हैं, वह स्नान कर रहे हैं। आप थोड़ी देर के लिए पांव सीधा कर लो,” मंगला बोली।
“बहन मंगला, भगवान तो अपना पांव सीधा नहीं कर रहे हैं। मुझे तो लगता है डब्बे में बंद रहने से इनका पांव अकड़ गया है। ना जाने इस बाबा ने कब से भगवान को इस डब्बे में बंद कर रखा था। चलो भगवान, अब हम तुम्हारा पांव सीधा करते हैं,” सुमंगला बोली।
इसके बाद मंगला ने अपने भोजन की पोटली में से मक्खन निकाला और उस मक्खन से लड्डू गोपाल की मालिश करने लगी। भगवान ने जब दोनों के इतने प्रेम को देखा, तो वे उनके सहज और सरल स्वभाव पर रीज गए और अपने भक्त के प्रेम के लिए अपने हाथ-पांव सीधे कर लिए।
“देख सुमंगला, भगवान ने अपने हाथ-पांव सीधे कर लिए हैं। बहन, यह बहुत भूखे भी होंगे, पता नहीं इस बाबा ने इन्हें खाना खिलाया कि नहीं। चलो, हम इन्हें खाना खिलाते हैं,” मंगला बोली।
मंगला और सुमंगला अपने भोजन के लिए लाई हुई रोटी और माखन का भोग भगवान को लगाने लगीं। इतने में साधु बाबा स्नान करके वहां आ गए। साधु को देखकर मंगला और सुमंगला वहां से भागने लगीं और कुछ दूर जाकर रुककर बोलीं, “अरे ओ बाबा, भगवान को इतना डराया-धमकाया मत करो। तुमने भगवान को डरा-धमका के रखा था ना, बेचारे वह टेढ़े पांव करके डब्बे में बैठे थे। हमने उनका पांव सीधा कर दिया है। अब उनका पांव टेढ़ा मत करना।”
जब साधु ने लड्डू गोपाल को देखा, तो लड्डू गोपाल के दोनों हाथ-पैर सीधे हुए थे। यह चमत्कार देखकर साधु उन दोनों स्त्रियों को रोकने के लिए उनके पीछे भागने लगे, “अरे, रुक जाओ, भागो मत, रुक जाओ। मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा।”
पर वह दोनों नहीं रुकीं। उन्हें लगा कि बाबा उन्हें पकड़कर मार लगाएंगे।
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अगले दिन मंगला और सुमंगला दोनों सब्जी बेचने के लिए वृंदावन आईं और आज भी उन दोनों की सब्जियां जल्दी बिक गईं। आज वे फिर से मंदिर में कथा सुनने के लिए चली गईं। कथा में गुरुजी भगवान के नाम की महिमा की चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा, “भक्तों, यदि आप ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपोगे तो भवसागर से भी पार हो जाओगे। इसलिए भगवान के नाम को हमेशा जपते रहना चाहिए। यही नाम हमें भवसागर से पार कराएगा।”
आज की कथा सुनकर दोनों वापस अपने घर के लिए जाने लगीं।
“बहन मंगला, तूने सुना आज गुरुजी ने कथा में क्या कहा है कि ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपोगे तो भवसागर से भी पार हो जाओगे,” सुमंगला बोली।
“तो बहन, जब ‘राधे-श्याम’ नाम लेने से भवसागर पार कर सकते हैं, तो यह यमुना भी तो हम पार कर सकते हैं,” मंगला ने कहा।
“हाँ बहन, हम दोनों रोज इस पार से उस पार आते-जाते हैं। हमारे 25 पैसे तो रोज नाव का किराया देने में खर्च हो जाते हैं। हम भी अब ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपेंगे और बिना पैसे खर्च किए यमुना पार हो जाएंगे,” सुमंगला ने कहा।
मंगला और सुमंगला ने गुरु के वचनों पर विश्वास करके ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपने लगीं और यमुना की ओर बढ़ने लगीं। वे दोनों ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपते हुए सच में पानी के ऊपर चलने लगीं। ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपते हुए उन दोनों ने पानी के ऊपर चलकर यमुना को पार कर लिया। अब तो मंगला और सुमंगला का कृष्ण के प्रति प्रेम और विश्वास दृढ़ हो गया और वे दोनों कृष्ण की भक्ति करने लगीं।
एक दिन मंगला ने कहा, “बहन सुमंगला, हमने गुरुजी की कृपा से श्री कृष्ण की भक्ति पाई है और गुरुजी के कहने पर हमने नाम जपते हुए यमुना को पैदल पार किया है। इससे हमारे बहुत पैसे भी बचे हैं। तो बहन, क्यों ना हम गुरुजी को घर बुलाएं और उन्हें भोजन कराएं?”
“ठीक है बहन, तुम जाकर गुरुजी को ले आओ और मैं यहां पर भोजन की तैयारी कर लेती हूं,” सुमंगला ने कहा।
मंगला गुरुजी को लेने मंदिर जाने लगी। मंगला मंदिर में गई और गुरुजी से बोली, “गुरुजी, हम चाहते हैं आप अपने चरण हमारी कुटिया में रखो। हम आपको भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा देना चाहते हैं।”
गुरुजी ने मंगला की बात मान ली और बोले, “ठीक है बेटी, मैं तुम्हारे संग तुम्हारी कुटिया में चलने के लिए तैयार हूँ।”
मंगला गुरुजी को मंदिर से लेकर चलने लगी। गुरुजी को लेकर यमुना तट पर आ गई। गुरुजी ने जब देखा कि यमुना तट पर तो कोई नाव नहीं है, यह मुझे पार कैसे लेकर जाएगी? तब गुरुजी ने मंगला से पूछा, “बेटी, तुम मुझे यमुना पार कैसे लेकर जाओगी? यहां तो कोई नाव ही नहीं दिख रही।”
“गुरुजी, आपने ही तो हमें सबसे बड़ी नौका प्रदान की है,” मंगला बोली।
मंगला को लगा कि जैसे हम गुरुजी के शिष्य होकर ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपकर यमुना पार कर लेते हैं, वैसे ही गुरुजी भी यमुना पार कर लेते होंगे। मंगला ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपते हुए पानी में चलने लगी। मंगला ने जब थोड़ी दूर जाकर पलट के देखा तो गुरुजी वहीं किनारे खड़े हुए थे।
“अरे गुरुजी, आप आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हो? आओ,” मंगला ने कहा।
गुरुजी को लगा कि इस तट पर यमुना का पानी बहुत कम है। यह विचार करके गुरुजी आगे बढ़ने लगे। जैसे ही गुरुजी ने अपना पांव पानी में आगे बढ़ाया, वैसे ही गुरुजी कमर तक पानी में डूब गए।
“अरे, यहां तो पानी बहुत गहरा है और यह पानी में कैसे चल रही है? अरे, यह कोई आम स्त्री नहीं, यह तो कोई चुड़ैल लगती है जो पानी में चल रही है,” गुरुजी ने कहा।
गुरुजी को पानी में डूबा देख, मंगला गुरुजी को लेने के लिए वापस आने लगी। मंगला गुरुजी के पास पहुंचकर उनका हाथ पकड़कर ले जाने लगी।
“अरे, मुझे छोड़ो,” गुरुजी ने कहा।
मंगला ने गुरुजी की बातों का कोई जवाब नहीं दिया, वह बस ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जप रही थी। “हे भगवान, ये तो मुझे बीच यमुना में ले जाकर मारेगी,” गुरुजी ने सोचा।
मंगला गुरुजी को लेकर यमुना पार हो गई। “गुरुजी, हम यमुना पार आ गए हैं। गुरुजी, क्या बात है, आप मुझसे इतना डर क्यों रहे हैं?”
“कौन हो तुम? क्यों मारना चाहती हो मुझे? क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा? कौन हो तुम, चुड़ैल हो या भूतनी?” गुरुजी ने पूछा।
“गुरुजी, ना तो मैं कोई चुड़ैल हूं और ना कोई भूतनी। मैं तो आपकी शिष्या हूं,” मंगला बोली।
“हे भगवान, मैंने कब इन भूत-चुड़ैलों को शिष्या बनाया?” गुरुजी ने सोचा।
“गुरुजी, आपने ही तो हमें इस कथा में बताया था कि ‘राधे-श्याम, राधे-श्याम’ जपोगे तो भवसागर से पार हो जाओगे। तो हमें लगा जब भवसागर को पार कर सकते हैं तो यमुना पार भी तो कर सकते हैं। हम तो अब रोज नाम जप करके यमुना पार करते हैं। अब हमें कोई नाव की जरूरत नहीं होती,” मंगला ने कहा।
मंगला की बातें सुनकर गुरुजी हैरान रह गए और मंगला से बोले, “बेटी, तुमने अपने गुरु के वचनों और प्रभु पर इतना दृढ़ विश्वास रखा कि इसके बल पर तुमने यमुना के पानी पर चलकर यमुना पार कर ली। बेटी, तुम महान हो और महान है तुम्हारा प्रभु के प्रति प्रेम और विश्वास।”